‘मोहिनी एकादषी‘ का व्रत सभी व्रतों में सबसे उत्तम व्रत माना जाता है। जो कि वैषाख मास के शुक्लपक्ष की एकादषी को पडता है।
‘मेहिनी एकादषी‘ की कथा का संबंध समुंद्र मंथन से जुडा हुआ है, जिसका वर्णन पद्म पुराण में भी आता है।
पद्म पुराण व पौराणिक मान्यता के अनुसार जब देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन किया गया तो उससे अमृत कलश की प्राप्ति हुई। देवता और दानव दोनों ही पक्ष अमृत पान करना चाहते थे] जिसकी वजह से अमृत कलश की प्राप्ति को लेकर देवताओं और असुरों में विवाद छिड़ गया। विवाद की स्थिति इतनी बढ़ने लगी कि युद्ध की तरफ अग्रसर होने लगी। ऐसे में इस विवाद को सुलझाने और देवताओं में अमृत वितरित करने के लिए भगवान विष्णु ने एक सुंदर स्त्री का रूप धारण किया।
इस सुंदर स्त्री का रूप देखकर असुर मोहित हो उठे। इसके बाद मोहिनी रूप धारण किए हुए विष्णु जी ने देवताओं को एक कतार में और दानवों को एक कतार में बैठ जाने को कहा और देवताओं को अमृतपान करवा दिया। अमृत पीकर सभी देवता अमर हो गए। जिस दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया था] उस दिन वैशाख मास की शुक्ल एकादशी तिथि थी। इस दिन विष्णु जी ने मोहिनी रूप धारण किया था] इसलिए इस दिन को मोहिनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के मोहिनी रूप की पूजा की जाती है।
मोहिनी एकादषी व्रत में उपयोग होने वाली पूजा सामग्रीः-
भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की प्रतिमा, गंगाजल, चौकी, सुपारी, तुलसी, नारियल, ihyk चंदन, पीला कपड़ा, आम के पत्ते, कुमकुम, मौली, फूल, मिठाई, अक्षत, लौंग, पंचमेवा, धूप, दीप, फल।
मोहिनी एकादशी की पूजाविधि
एकादशी तिथि पर सुबह जल्दी उठकर स्नान करके सूर्यदेव को जल अर्घ्य दें। भगवान विष्णु के मोहिनी स्वरुप को मन में ध्यान करते हुए रोली] मोली] पीले चन्दन] अक्षत] पीले पुष्प] फल] मिष्ठान आदि भगवान विष्णु को अर्पित करें। फिर धूप&दीप से श्री हरि की आरती उतारें और मोहिनी एकादशी की कथा पढ़ें। इस दिन %ॐ नमो भगवते वासुदेवाय%^ का जप एवं विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना बहुत फलदायी है। इस दिन भक्तों को परनिंदा] छल&कपट] लालच] द्धेष की भावनाओं से दूर रहकर] श्री नारायण को ध्यान में रखते हुए भक्तिभाव से उनका भजन करना चाहिए।
व्रत के दौरान इन बातों का ध्यान रखना चाहिएः-
· मोहिनी एकादशी के दिन तुलसी के पत्ते ना तोडें।
· मोहिनी एकादशी का उपवास निर्जला रखा जाता है।
· मोहिनी एकादशी पर सुबह जल्दी स्नान करें] इस दिन साबुन से नहीं नहांये।
· मोहिनी एकादशी को चावल से बनी चीजों का सेवन ना करें।
· भगवान विष्णु के जब भोग लगाएं तो तुलसी की पत्तियां जरूर डालें।
· तामसिक चीजों मांस] शराब] लहसुन] प्याज का सेवन ना करें।
· पूजा&पाठ और धर्म से जुड़े कार्य करने चाहिए] गरीबों को दान करें।
मोहिनी एकादशी की व्रत कथाः-
युधिष्ठर ने श्री कृष्णजी से पूछा: है वासुदेव! वैशाख मास के शुक्लपक्ष में किस नाम की एकादशी होती है, उसका क्या फल होता है, उसके लिए कौन सी विधि है।
भगवान श्री कृष्णजी बोलेः हे धर्मराज! पूर्वकाल में परम बुद्धिमान श्री रामचन्द्रजी ने महर्षि वशिष्ठजी से यही बात पूछी थी, जिसे आज तुम मुझसे पूछ रहे हो।
श्रीराम जी ने कहा: भगवन! जो समस्त पापों का क्षय तथा सब प्राकर के दुखों का निवारण करनेवाला, व्रतों में उत्तम व्रत हो, उसे मैं सुनना चाहता हॅू।
वशिष्ठजी बोलेः श्रीराम! तुमने बहुत उत्तम बात पूछी है। मनुष्य तुम्हारा नाम लेने से ही सब पापों से शुद्ध हो जातें हैं। तथापि लोगों के हित की इच्छा से मैं पवित्रों में पवित्र उत्तत व्रत का वर्णन करूंगा। वेशाख मास के शुक्लपक्ष में जो एकादशी होती है।
सरस्वती नदी के रमणीय तट पर भ्रदावती नाम की सुन्दर नगरी है । वहाँ धृतिमान नामक राजा, जो चन्द्रवंश में उत्पन्न और सत्यप्रतिज्ञ थे, राज्य करते थे। उसी नगर में एक वैश्य रहता था, जो धन धान्य से परिपूर्ण और समृद्धशाली था। उसका नाम था धनपाल । वह सदा पुण्यकर्म में ही लगा रहता था । दूसरों के लिए पौसला प्याऊ, कुआँ, मठ, बगीचा, पोखरा और घर बनवाया करता था । भगवान विष्णु की भक्ति में उसका हार्दिक अनुराग था । वह सदा शान्त रहता था । उसके पाँच पुत्र थेः सुमना, धुतिमान, मेघावी, सुकृत तथा धृष्टबुद्धि। धृष्टबुद्धि पाँचवाँ था । वह सदा बड़े बड़े पापों में ही संलग्न रहता था । जुए आदि दुव्र्यसनों में उसकी बड़ी आसक्ति थी । वह वेश्याओं से मिलने के लिए लालायित रहता था। उसकी बुद्धि न तो देवताओं के पूजन में लगती थी और न पितरों तथा ब्राहणों के सत्कार में । वह दुष्टात्मा अन्याय के मार्ग पर चलकर पिता का धन बर्बाद किया करता था। एक दिन वह वेश्या के गले में बाँह डाले चौराहे पर घूमता देखा गया । तब पिता ने उसे घर से निकाल दिया तथा बन्धुबान्धवों ने भी उसका परित्याग कर दिया । अब वह दिन रात दुख और शोक में डूबा तथा कष्ट पर कष्ट उठाता हुआ इधर उधर भटकने लगा । एक दिन किसी पुण्य के उदय होने से वह महर्षि कौण्डिन्य के आश्रम पर जा पहुँचा । वैशाख का महीना था । तपोधन कौण्डिन्य गंगाजी में स्नान करके आये थे । धृष्टबुद्धि शोक के भार से पीड़ित हो मुनिवर कौण्डिन्य के पास गया और हाथ जोड़ सामने खड़ा होकर बोला: ब्राहम्ण! द्विजश्रेष्ठ! मुझ पर दया करके कोई ऐसा व्रत बताइये, जिसके पुण्य के प्रभाव से मेरी मुक्ति हो ।
कौण्डिन्य बोलेः वैशाख के शुक्लपक्ष में श्मोहिनीश् नाम से प्रसिद्ध एकादशी का व्रत करो ।
मोहिनी एकादशी को उपवास करने पर प्राणियों के अनेक जन्मों के किये हुए मेरु पवर्त जैसे महापाप भी नष्ट हो जाते हैं।
वशिष्ठजी कहते है:
श्रीरामचन्द्रजी! मुनि का यह वचन सुनकर धृष्टबुद्धि का चित प्रसन्न हो गया । उसने कौण्डिन्य के उपदेश से विधिपूवर्क श्मोहिनी एकादशीश् का व्रत किया । नृपश्रेष्ठ ! इस व्रत के करने से वह निष्पाप हो गया और दिव्य देह धारण कर गरुड़ पर आरुढ़ हो सब प्रकार के उपद्रवों से रहित श्रीविष्णुधाम को चला गया । इस प्रकार यह मोहिनी एकादशी का व्रत बहुत उत्तम है । इसके पढ़ने और सुनने से सहस्त्र गौदान का फल मिलता है ।
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