अपरा एकादशी व्रत
अपरा एकादशी ज्येष्ठ के महीने में कृष्ण पक्ष के 11 वें दिन मनाई जाती है, ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है, इस व्रत से व्यक्ति को कई तरह के रोग, दोष, और आर्थिक समस्याओं से भी मुक्ति मिलती है। इस व्रत को करने से व्यक्ति को अक्षय पुण्य प्राप्त होता है, और भगवान विष्णु व्यक्ति के जीवन से सभी दुख और परेशानियों को हर लेते हैं। विष्णु पुराण के अनुसार अपरा एकादशी का व्रत रखने से ब्रह्म हत्या, निंदा, प्रेत योनि, झूठ, झूठा ज्योतिषी और झूठा वैद्य बनना जैसे पापों से मुक्ति मिलती है। इस दिन श्री हरि भगवान विष्णु की पूजा करने से स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है।
अपरा एकादशी व्रत में प्रयोग होने वाली पूजा सामग्री कीः-
भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की प्रतिमा, गंगाजल, चौकी, पीले वस्त्र, तुलसी माला, पीले फूल, गेंदे के फूलों की माला, पीले मिष्ठान, घी का दीपक, धूप, कुमकुम, मौली, अक्षत, फल आदि वस्तुएं लें।
अपरा एकादशी की पूजाविधि:-
एकादशी तिथि पर सुबह जल्दी उठकर स्नान करके सूर्यदेव को जल अर्घ्य दें। इसके बाद भगवान विष्णु को ध्यान में रखते हुए व्रत का संकल्प लें। इसके बाद असान बिछाकर बैठ जांए, गंगाजल से स्नान करवांए, पीला चन्दन लगाकर तिलक करें, नए वस्त्र धारण करवांए, श्रंगार करें, फिर धूप-दीप से श्री हरि की आरती उतारें और अपरा एकादशी की कथा पढ़ें और भगवान विष्णु की आरती करें।
अपरा एकादशी व्रत कथा -
पौराणिक कथा के अनुसार, महिद्वाज नाम का एक राजा था जो बहुत धर्मपरायण और दयालु था। उसका छोटा भाई वज्रध्वज उससे एकदम विपरीत स्वभाव का था और उसे अपने भाई का व्यवहार पसंद नहीं था। वह हमेशा ही इस फिराक में रहता था कि किस तरह से राज्य को हथिया लिया जाए। वह हमेशा अपने भाई को मारने और अपनी शक्ति और राज्य प्राप्त करने के अवसर की तलाश में रहता था। एक दिन मौका पाकर उसने अपने भाई को मार दिया और एक पीपल के पेड़ के नीचे दफना दिया।
लेकिन अकाल मृत्यु के कारण, महिद्वाज मोक्ष प्राप्त करने में असमर्थ था। इस तरह से वह उस पेड़ पर एक आत्मा के रूप में रहता था और उस पेड़ से गुजरने वाले हर व्यक्ति को डराता और परेशान करता था। एक बार धौम्य ऋषि उस वृक्ष के पास से गुजर रहे थे। तब उन्होंने उस प्रेतात्मा को देखा। ऋषि ने अपने तपोबल से प्रेत के उत्पात का कारण समझा। इसके बाद उन्होंने उस आत्मा को पीपल के पेड़ से उतारा और परलोक विद्या का निर्देश दिया। उसे प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने के लिए धौम्य ऋषि ने खुद अपरा एकादशी का व्रत किया। उसके पुण्य से धर्मात्मा को प्रेत योनि से मुक्ति मिल गई। इसके बाद उसने ऋषि का धन्यवाद किया और स्वर्ग को चला गया। मान्यता है कि अपरा एकादशी व्रत कथा का पाठ करने से जातक को सभी तरह के पापों से छुटकारा मिलता है।
!! इति व्रत कथा समाप्त !!
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